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मियां मुसद्दीलाल

मियां मुसद्दीलाल

धन दौलत शोहरत के मालिक एक थे प्यारेलाल,
हंसते गाते जीवन में बस रह गया एक मलाल।
प्यारे जी बन चुके अभी तक छः कन्या के बाप,
एक पुत्र भी ना मिल पाया, हाय रे उनके भाग।

बदले कैसे भाग, उन्होंने कर लिए जंतर-मंतर,
कौन बढ़ाएगा अब उनके वंश को आगे चलकर।
ईश्वर से फिर सुनी गई ना उनकी चीख पुकार,
आखिर उनको प्राप्त हुआ एक बेटे का उपहार।

जन्मा उनके आंगन में एक नन्हा बाल गोपाल,
जिला जोधपुर, गांव रामपुर, नाम मुसद्दीलाल।
सुंदर और सुशील कि मियां दिखने में टिप-टॉप,
खेलकूद में आगे, उस पर कर लिया कॉलेज टॉप।

पढ़ने में भी तेज, मुसद्दी भाषण में भी आगे,
सब ने बोला, वाह री किस्मत, भाग्य पिता के जागे।
प्यारेलाल जी बोले, बेटा बहुत बज गया डंका,
पूरी करो पढ़ाई और अब तुम्हीं संभालो धंधा।

इतना सुनकर मियां जी की उड़ गई सब बेफिक्री,
सोचे थे कि अभी तो लेंगे MBA की डिग्री।
कैसे करूं पढ़ाई, पिताजी निकले बड़े ही क्रूर,
क्षण भर में ही कर दिए मेरे सपने चकनाचूर।

खाना-पीना छोड़ मुसद्दी करने चले बवाल,
अपनी जिद मनवा ही लेंगे मियां मुसद्दीलाल।
प्यारेलाल जी देख ना पाए अपने पुत्र की पीड़ा,
जाओ बेटा, कर लो पूरा MBA का कीड़ा।

MBA में मियां जी ने किया एक दिन रात,
भाषण में भी सबसे आगे उनके नए विचार।
अपने नए विचारों से वो फेमिनिस्ट कहलाए,
फेमिनिज्म के चक्कर में वो हर लड़की को भाए।

हर लड़की को देखे क्यों जब नजर एक में डूबी,
जिला बॉम्बे, क्षेत्र बांद्रा, नाम था उसका रूबी।
रूबी जी को देख के मियां हो गए प्रेम में पागल,
ब्याह करेंगे रूबी जी से, हो जाए चाहे दंगल।

पहली फुर्सत में मियां ने झटपट कॉल लगाया,
माता-पिता को अपने दिल का सारा हाल सुनाया।
इतना सुनकर माथा पकड़े बैठे प्यारेलाल,
स्त्रीवाद में फंसे हमारे पुत्र मुसद्दीलाल ।

उधर मुसद्दीलाल ने फिर ना देखा दाएं-बाएं,
ब्याह रचाकर रूबी जी को अपने घर ले आए।
पहले ही दिन सुबह-सुबह रूबी जी बोली आकर,
चाय कड़क पीती हूं , लेकिन कम ही रखना शक्कर।

मियां जी कुछ समझ ना पाए बोले फिर सकुचाकर,
सुबह-सुबह ही जोक? डार्लिंग वाह तुम्हारा ह्यूमर!
रूबी बोली, ओहो डार्लिंग! किसने किया मजाक?
सुबह से अब तक चाय ना आई, कब के बज गए आठ।

मियां जी भी समझ ना पाए अब तक ये सिचुएशन,
फेमिनिज्म ने कर दिया बाबा बहुत बड़ा कंफ्यूजन।
क्या मजाक करती हो डार्लिंग? वो बस थी स्पीच।
फेमिनिज्म क्या होती है सचमुच की कोई चीज?

रूबी बोली, झूठे मुसद्दी! तुमने किया था वादा,
घर के सारे काम करेंगे बांट के आधा-आधा।
मैंने उठकर कपड़े लगाए, मैं ही पानी लाई,
चाय बनाओ पहले तुम, फिर करना साफ-सफाई ।

चाय बनाने चले मियां जी, बोले जाते-जाते,
भूल हो गई भारी मुझसे, माफ करो हे माते।
बड़ी-बड़ी बातें करके मैंने जो तुम्हें फंसाया,
ऐसी तैसी फेमिनिज्म की, कैसा मैं पगलाया।

अपने ही पैरों में उलझा अपना बिछाया जाल,
फेमिनिस्ट बनने को चले थे मियां मुसद्दीलाल।