मैं चॉकलेट खा रही हूँ और महसूस कर रही हूँ कि ये कितनी बोरिंग और बिल्कुल भी स्वादिष्ट नहीं है। बड़े होने के बाद चॉकलेट का स्वाद वैसा नहीं रह गया। मुझे याद है जब मैं 9वीं कक्षा में थी, मेरी सीट के पास कुछ लड़कियाँ एक बड़ी और पिघल चुकी चॉकलेट आपस में बाँट रही थीं। मैंने उन्हें उस पिघली हुई चॉकलेट को टुकड़ों में तोड़ते देखा। वो कितनी स्वादिष्ट लग रही थी। मैंने उसके स्वाद की कल्पना कई बार अपने मन में की। वो छोटी मैं उस चॉकलेट को पाने के लिए कितनी तरस गई थी। उन दिनों चॉकलेट खाना कितनी बड़ी बात होती थी। मैं और मेरा भाई सिर्फ अपने जन्मदिन पर चॉकलेट खाते थे, साल में कुछ ही बार। मुझे याद है, एक चॉकलेट को पूरे हफ्ते खाना, थोड़ा-थोड़ा करके। उसे तुरंत खत्म नहीं करना, बल्कि उसका भरपूर आनंद लेना।
और फिर मैं बड़ी हो गई। दूसरे शहर चली गई, अकेले रहने और कमाने। अब मेरे फ्रिज में ढेर सारी चॉकलेट्स हैं; हर ब्रांड और साइज की, लेकिन अब उसका स्वाद वैसा नहीं लगता। सबसे बेहतरीन चॉकलेट भी अब उतनी स्वादिष्ट नहीं लगती। मुझे लगता है, चॉकलेट्स का असली मजा शायद तब आता है जब हम गरीब होते हैं या फिर मोटे। क्या विडंबना है।