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Intelligence of the ignorant one

जीवनभर का ऋण

ये अगस्त का महीना है, मतलब रक्षाबन्धन का समय। इस साल मैं घर से दूर हूँ लेकिन मुझे याद है कि ये त्यौहार हमारे परिवारों के लिए कितना महत्वपूर्ण होता है। हफ्तों पहले से बहनें अपने भाइयों को मिठाई के डिब्बे और राखी भेजना शुरू कर देती हैं। फिर वो बदले में अपनी बहनों को कुछ उपहार या पैसे देते हैं। ये कार्यक्रम पूरे महीने भर चलता रहता है।मैं जब भी उपहारों या वस्तुओं का लेन-देन देखती हूँ तो मेरे मन में ये विचार आता है कि ये सारी चीजें कितनी सतही होती हैं। हम किसी को कुछ उपहार देते हैं, फिर उस व्यक्ति पर हमारा ऋण होता है फिर वो इस ऋण को चुकाने के लिए हमको उपहार देता है और ये कार्यक्रम बस ऐसे ही सालों साल चलता रहता है। शायद यही कारण है कि हम संसार के सारे ऋण चुका पाते हैं लेकिन माता-पिता का नहीं। क्योंकि उसके बदले तो क्या ही उपहार है जो दिया जा सके।

खैर अभी मेरा माता- पिता के प्रेम पर प्रवचन देने का कोई उद्देश्य नहीं है। मुझे दरअसल राखी के त्यौहार पर एक विशेष व्यक्ति का विचार आया: मेरी मौसी। इसमें इतना खास क्या है? मैं लिखने की कोशिश करती हूँ। मौसी का मुझे उपहार देने का तरीका बचपन से ही बहुत अलग रहा। वो मुझे हर राखी और जन्मदिन पर नए कपड़े दिलवाती थी।कपड़े कोई भी दे सकता है, लेकिन कितने ताज्जुब की बात है कि मौसी को बचपन से हमेशा ये मालूम होता था कि मेरे पास किस-किस तरह के और रंग के कपड़े हैं और अगली बार मुझे किस तरह के कपड़े दिलवाने हैं। इतना ही नहीं, मौसी को खाने में मेरी पसंद की एक-एक चीज का नाम हमेशा याद रहता है: बेर, सिंघाड़े, अमरूद, लहसुन की चटनी, चूल्हे की रोटी और धनिए के लड्डू। इस काम में वो मेरी मम्मी से भी आगे रहती हैं।

मुझे याद है, जब मैं रुड़की में थी, मेरे लिए मौसी की तरफ से हर त्योहार पर एक डिब्बा मिठाई का आता था, जिसमें खाने की केवल वो चीजें होती थीं जो मुझे पसंद थीं। उस समय मेरे लिए ये चीजें इतनी सामान्य थीं कि मुझे लगता था कि ये सब ऐसे ही होता होगा। मौसी लोगों का यही काम होता होगा। लेकिन आज जब मैं घर से बहुत दूर आ गई हूँ, मुझे एहसास होता है कि ये सब ऐसे ही नहीं होता। ये सिर्फ कुछ खुशकिस्मत लोगों के साथ ही होता है। जीवन में कुछ ही कर्ज होते हैं जो चुकाए नहीं जा सकते। किसी को महंगे उपहार के बदले आप महंगा उपहार दे सकते हैं, कपड़ों के बदले कपड़े और पैसों के बदले पैसे दे सकते हैं। लेकिन मुझे कभी ये समझ नहीं आया कि उनके दिए उपहारों को कभी कैसे चुकाया जा सकता है। न तो मैं उनसे बेहतर लड्डू बना कर भेज सकती हूँ और न ही उन्हें मेरे दिए हुए कपड़ों की जरूरत है। बल्कि मुझे तो ये भी नहीं पता कि वो खाने में क्या पसंद करती हैं।

उनसे मैंने जीवन में ये सीखा कि अगर आप किसी बच्चे के जीवन में हमेशा के लिए जगह बनाना चाहते हैं, तो आप उन्हें महंगे तोहफे या पैसे नहीं देते, आप उन्हें वो चीजें देते हैं जो आपको उनसे जोड़कर रखती हैं। आप उनके लिए वो करते हैं जो केवल आप ही कर सकते हैं। इन उपहारों को वो जीवन भर आपसे जोड़कर याद रखेंगे और आपसे भावनाओं से जुड़े रहेंगे। क्योंकि ये वो जगह होती है जहां उपहारों का लेन-देन नहीं किया जा सकता और हम जीवनभर के लिए ऋणी कहलाते हैं, और आप खुशकिस्मत हैं अगर आपके जीवन में आपके माता-पिता के सिवा कुछ और लोग भी हैं जो इस श्रेणी में आते हैं।