Category: Poems
मैं
उम्र 35, रंग सांवला और शरीर भारी से थोड़ा हल्का,
हूँ मैं कतई साधारण पर क्या कहना मेरे आत्मबल का।
हुस्न पे कर लूं अपने नाज़, ऐसी तो मेरी शक्ल नहीं,
कब की आ गई अक्कल दाढ़, बस आती मुझको अक्ल नहीं।
सपने देखूं बड़े-बड़े, आलस का पलड़ा भारी है।
कभी खास कुछ किया नहीं और हुनर की मारा-मारी है।
राय मैं हर मुद्दे पर दूं, उल्टी ही सही, बकवास सही।
करूं मैं बातें बड़ी-बड़ी, चाहे दिमागी हालत कुछ खास नहीं।
मियां मुसद्दीलाल
धन दौलत शोहरत के मालिक एक थे प्यारेलाल,
हंसते गाते जीवन में बस रह गया एक मलाल।
प्यारे जी बन चुके अभी तक छः कन्या के बाप,
एक पुत्र भी ना मिल पाया, हाय रे उनके भाग।
बदले कैसे भाग, उन्होंने कर लिए जंतर-मंतर,
कौन बढ़ाएगा अब उनके वंश को आगे चलकर।
ईश्वर से फिर सुनी गई ना उनकी चीख पुकार,
आखिर उनको प्राप्त हुआ एक बेटे का उपहार।
जन्मा उनके आंगन में एक नन्हा बाल गोपाल,
जिला जोधपुर, गांव रामपुर, नाम मुसद्दीलाल।
सुंदर और सुशील कि मियां दिखने में टिप-टॉप,
खेलकूद में आगे, उस पर कर लिया कॉलेज टॉप।
एक बीज की कहानी
छठा सर्द का अंधियारा, सुन्दर बसन्त जब आया,
खिली क्यारियां फूलों की, तितली ने पंख फैलाया।
कोने में एक फूल खिला था, लाल था जिसका रंग,
फूल ने छोटा बीज गिराया, खोल के अपने पंख ।
कोने में निर्जीव पड़ी थी, छोटी सी वो चीज,
सही समय की राह देखता नन्हा सा एक बीज।
धूल में जैसे लुप्त हो गई उसकी हर पहचान,
नव जीवन की आस लगाती नन्ही सी वो जान।
झोगू और गोलू
झोगू और गोलू दो भाई, एक कमीज है दूजा टाई।
लगा के सोफा, टेबल, कुर्सी, दोनों ने एक दुनिया बसाई।
पेड़ लगाकर मन बहलाते, करते रहते साफ सफाई।
उल्टा-पुल्टा योगा करते, रोज नया कुछ करते ट्राई।
कभी प्यार से हंसते-गाते, चिपक के बांटे एक रजाई।
नदी किनारे सैर को जाते, खायें- पियें पकवान मिठाई।
कभी छेड़ते दंगल तगड़ा, प्यार-मोहब्बत टाटा- बाई।
दिन-भर करें लड़ाई झगड़ा, एक दूजे की शामत आई।
घर
एक चिड़िया छोटी और सुंदर, फूलों से नाजुक उसके पर,
उड़कर जाती सात समंदर, गली-गली ढूंढे अपना घर।
कभी बादलों से बतलाती, कभी बिजलियों से जाती डर,
सबसे पूछे घूम-घूम कर, क्या देखा तुमने मेरा घर ?
कहीं सैकड़ों फूल खिले हैं, रंग-बिरंगा सा है अंबर,
जग सारा है कितना सुंदर, नहीं मिला लेकिन अपना घर।
पापा जहां थे लाड़- लड़ाते, मां रखती आंचल में भरकर,
भाई-बहन करते थे गड़बड़, वहीं रह गया अपना वो घर।
जिन्हें गुस्सा बड़ा आता है
कभी-कभी मैं ये सोचती हूँ कि जिन्हें गुस्सा बड़ा आता है,
उनकी शायद कोई भी ख़्वाहिश कभी अधूरी नहीं रही होगी।
जीवन ने पूरे किए होंगे सपने,
सुख-दुख के साथी रहे होंगे अपने।
ख्वाब ऐसा एक नहीं जो पूरा ना होगा,
प्रेम गीत कोई अधूरा ना होगा।
फिर अगर सब्जी में नमक ज्यादा डल जाए,
या रोटी का एक कोना थोड़ा सा जल जाए।
करना पड़ जाए अगर ट्रेन का इंतजार,
या शर्ट पर गिर जाएँ चाय की बूंदें दो-चार।
मेरे नंगे पांव
बारिश के पानी से भर आई गलियां, गोते लगाती वो कागज़ की नाव,
गीले धरातल पर मिट्टी से सनकर नक्शे बनाते मेरे नंगे पांव।
गर्मी की छुट्टी और तपती दुपहरी, आंख-मिचौली करते धूप और छांव,
जलती-सी फर्श पे करते तमाशे, जल-भुन जाते मेरे नंगे पांव।
छोटी-सी गुड़िया के सपने सलोने, परदेस जैसा है बाजू का गांव,
टीका और बिंदी और छन-छन छनकती पायल को तरसें मेरे नंगे पांव।
बचपन की ख्वाहिश बस खाना - खिलौना, टॉफी, मिठाई और मेले का चाव,
पापा के दफ़्तर से आने की ख़ुशी में दौड़ लगाते मेरे नंगे पांव।
क्यूँ
कुछ थाम लिया; कुछ छोड़ दिया, छूटे का शोक मनाएं क्यूँ,
जीवन है बस खोना-पाना, कुछ खोकर फिर पछताएं क्यूँ ।
जीवन तो मिला सुंदर ना सही, नदिया तो मिली सागर ना सही,
यूं बात-बात पर रो रोकर, नदिया के मोती बहाए क्यूँ ।
गलती की क्यूँ कि जिंदा हैं, किस बात पे फिर शर्मिंदा है;
गलती करने के डर से ही, जीवन में यूं थम जाएं क्यूँ ।
तेरा सारा रस संसार में है; मुझे दुनिया से कुछ मोह नहीं,
चल अपने अपने मन की करें, एक दूजे को बहलाएं क्यूँ |
लटक जरा मटक जरा
लटक जरा मटक जरा, तू जुल्फ को झटक जरा,
ये बंदिशें ये बेड़ियाँ समेट कर पटक जरा ।
से कामिनी से कोमला से माधुरी से चंचला,
ये रूप तेरी वासना, ये रूप तेरी कैद है।
जो देह छूटना ही है, तो रूप क्या कुरूप क्या?
सौंदर्य काम वासना को धूल सा झटक जरा।
तू करती आ रही यकीं कि लज्जा तेरा अस्त्र है।
तू आइना समाज का, चरित्र तेरा शस्त्र है।
पत्नी के लिए पति की ओर से
कुछ ऐसा करो उपाय प्रिये, पल भर में सवेरा हो जाए,
ना करना पड़े प्रयास मुझे, और तू भी मेरा हो जाए।
स्त्री को देता पूरे rights, मैनें Feminism भी सीखा है,
Equality और good manners का, मुझे आता-तौर तरीका है।
पर तुम जो संभालो घर मेरा बिस्तर पे बसेरा हो जाए,
ना करना पड़े प्रयास मुझे, और तू भी मेरा हो जाए।
तुम coolness की देवी हो, कहने को मॉर्डन बनती हो,
मेरे हुक-अप, पैच-अप की स्टोरी, बड़ा chill होकर तुम सुनती हो।
पर Ex जो कर दे Hi- Hello, जीवन का बखेडा हो जाए,
ना करना पड़े प्रयास मुझे, और तू भी मेरा हो जाए।
झूठ सही
तेरा आना जाना झूठ सही, ये सारा फसाना झूठ सही,
बाकी है तू मुझमें थोड़ा सा, संग ना रह पाना झूठ सही।
जंगल के कटीले फूलों से, मैने खिलना बिखरना सीखा है,
यूं बारिश में खुश्बू का मेरी, फीका पड़ जाना झूठ सही।
उम्मीद की थोड़ी परछाई, जिन्दा है चाहे जो भी हो,
यूं दुनिया दिखावे की ख़ातिर, मेरा खुद को हराना झूठ सही।
हाँ झूठ सही ये अश्क मेरे, मेरा हंसना - गाना झूठ सही,
तेरा आना जाना झूठ सही, ये सारा फसाना झूठ सही।
मेरा हिसाब कर दो
खत लिखे थे सैकड़ों उनका जवाब आया नहीं,
लो गया एक और अरसा, लौट तू पाया नहीं।
पढ़ने को कुछ ना बचा गर, बंद अब ये किताब कर दो।
अंब जुदा जब हो रहे हो, तुम मेरा हिसाब कर दो।
फूल तुमने एक दिया था मोगरे का याद है?
फूल को जुल्फों में मैने था सजाया याद है?
फूल को वापिस रखो, इन जुल्फों को आजाद कर दो।
मुद्दतें सी हो गई हैं, अब मेरा हिसाब कर दो।
माँ का जन्मदिन
वो ठहरी विस्तृत अम्बर सी, वो नदिया सी बहती है,
मैं अंश हूँ उसकी आत्मा का ये मेरी मां कहती है।
मेरे भविष्य की चिंता में वो डरी - डरी रहती है,
मैं अंश हूँ उसकी आत्मा का ये मेरी मां कहती है।
कहने को नाज़ुक स्त्री है हर भार मगर सहती है,
मैं अंश हूँ उसकी आत्मा का ये मेरी मां कहती है।
मेरी जननी के आंचल से अमृत की धार बहती है,
मैं अंश हूँ उसकी आत्मा का ये मेरी मां कहती है।
मातृ-दिवस
फूलों की महकी सी बगिया, कली-कली खुलकर मुस्काई,
मेरी मां सूरज की ज्योति, मैं अपनी मां की परछाई।
ठण्डी - ठण्डी हवा बह रही, महकी महकी जरा-जरा सी,
मेरी मां सुन्दर सी मूरत, मुझमें मां की झलक जरा सी।
गहरा - गहरा नीला अंबर, बादल ने आंचल बिखराया,
मेरी मां धरती सी सुंदर, मुझमें अपनी मां का साया।
निश्चल सी बहती एक नदिया, फूलों का एक नरम बिछौना,
मां की आंखें जलता दीपक, मैं आंखों का स्वपन सलोना।
For Nikki
I salute royal dreams in sweet innocent eyes,
Wish you a happy flight in boundless skies.
I salute royal path on which you want to fly,
Wish you courage and passion that never-never die.
I salute every moment of happy childhood days,
The paper-boat in water and sweet-homes of clays.
I salute love and care which never never end,
My little sweetheart brother, my sweet childhood friend.
Category: Hindi Corner
लोग जो हमेशा हमारे साथ रहते हैं
भारत में अभी दिवाली की तैयारियां चल रही हैं और इसलिए रह-रहकर मुझे घर की याद आ रही है। दिवाली की सफाई भी क्या सर-दर्दी भरा काम है। जब दिवाली पर घर की याद आती है तो आपको किसी एक चीज की याद नहीं आती, हर चीज याद आती है; सर्दी की तैयारी में बाहर निकले रजाई और गद्दे, धूल में सने हुए पंखे और पुराने मैल जमे हुए रसोई के डिब्बे। मुझे याद है कि मैं और भैया छत पर रजाई के सिनेमा हॉल बनाकर खेलते थे। मम्मी और पापा जब दिवाली की आरती बोलते थे तब हम आरती की धुन पर पागलों की तरह नाच रहे होते थे और मम्मी आरती गाते हुए हम दोनों को गुस्से में आँखें दिखा रही होती थी।
कछुए और खरगोश की कहानी से हमने क्या सीखा?
कछुए और खरगोश की कहानी हम सबने बचपन से ही सैकड़ों बार सुनी होगी। उसको दोहराने की यहाँ कोई ज़रूरत नहीं। मैं बात करना चाहती हूं इस बारे में कि इस कहानी से हमने क्या सीखा? यही ना कि धीरे-धीरे आगे बढ़ते रहने से एक दिन सफलता मिल जाती है? लेकिन क्या हमने सचमुच इस कहानी से यही सीखा?
अच्छा, चलिए इस बात को ऐसे कहते हैं: अगर हमको जीवन में चुनने का अवसर दिया जाए कि हम खरगोश बनना चुनेंगे या कछुआ? मैं इस बात का दावा कर सकती हूँ कि हममें से अधिकांश लोग खरगोश बनना चुनेंगे, तेज़ और चालाक। लेकिन हां, कहानी वाले खरगोश से थोड़ा ज़्यादा समझदार, ताकि रास्ते में रुकने की भूल ना करें। और शायद ही कोई ऐसा होगा जो कछुआ बनना स्वीकार करेगा, जो धीरे-धीरे लगातार चलते हुए मंज़िल पर पहुंचता है।
दृश्य और दर्शक
मेरे मन में ये विचार आया था जब मैं अपने पापा के साथ नैनीताल गई थी, शायद अगस्त 2021 में, और तब से मैं जब भी किसी सुंदर घूमने वाली जगह जाती हूँ, मुझे ये विचार एक ना एक बार आ ही जाता है।
नैनीताल सुंदर है, बहुत सुंदर। चारों तरफ पेड़ों की चादर से ढके पहाड़ हैं और बीच में है एक सुंदर झील। बादल कभी-कभी इतना नीचे आ जाते हैं कि वो आपको छू लेने का एहसास देते हैं और झील में इतनी सुंदर मछलियाँ और हंस हैं कि अगर आप उन्हें देखेंगे तो शायद घंटों देखते रहेंगे।
यूरोप के कबूतर
क्या मैं यूरोप से इतनी प्रभावित हूँ कि यहाँ की हर छोटी-छोटी चीज़ पर ब्लॉग लिख रही हूँ? नहीं, नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं है। ये बस मेरी एक साधारण सी अवधारणा है, जानवरों के व्यवहार के बारे में और कैसे यह इंसानों से इतना अलग है। कुछ दशक पहले, यहाँ मुख्य रूप से काले कबूतरों की आबादी रही होगी और शायद कुछ सफेद कबूतर कहीं से आ गए होंगे। शायद वे सफेद कबूतर कहीं से प्रवास करके आए होंगे या शायद उनमें कोई आनुवंशिक बदलाव हुआ होगा, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। और अब, यहाँ 80% कबूतरों की आबादी हाइब्रिड है। उनमें से ज्यादातर काले हैं, जिनके पंखों में थोड़ी मात्रा में सफेद धब्बे दिखाई देते हैं और कुछ सफेद हैं जिनमें काले रंग की हल्की सी झलक है। मुझे यहाँ बहुत कम कबूतर दिखाई देते हैं जो पूरी तरह से काले हों, और उससे भी कम हैं जो पूरी तरह से सफेद हैं। ये दोनों प्रजाति के कबूतर पूरी तरह से घुल-मिल चुके हैं और ज्यादातर हाइब्रिड हो गए हैं।
जीवनभर का ऋण
ये अगस्त का महीना है, मतलब रक्षाबन्धन का समय। इस साल मैं घर से दूर हूँ लेकिन मुझे याद है कि ये त्यौहार हमारे परिवारों के लिए कितना महत्वपूर्ण होता है। हफ्तों पहले से बहनें अपने भाइयों को मिठाई के डिब्बे और राखी भेजना शुरू कर देती हैं। फिर वो बदले में अपनी बहनों को कुछ उपहार या पैसे देते हैं। ये कार्यक्रम पूरे महीने भर चलता रहता है।मैं जब भी उपहारों या वस्तुओं का लेन-देन देखती हूँ तो मेरे मन में ये विचार आता है कि ये सारी चीजें कितनी सतही होती हैं। हम किसी को कुछ उपहार देते हैं, फिर उस व्यक्ति पर हमारा ऋण होता है फिर वो इस ऋण को चुकाने के लिए हमको उपहार देता है और ये कार्यक्रम बस ऐसे ही सालों साल चलता रहता है। शायद यही कारण है कि हम संसार के सारे ऋण चुका पाते हैं लेकिन माता-पिता का नहीं। क्योंकि उसके बदले तो क्या ही उपहार है जो दिया जा सके।
अज्ञानी की बुद्धिमत्ता
मैं यहाँ से शुरू करना चाहूँगी कि “हमको कभी भी अज्ञानता में नहीं रहना चाहिए,” ताकि मैं किसी बेवकूफी भरे किरदार को बुद्धिमान न साबित करने लगू। लेकिन हाँ, ये भी सच है कि अज्ञानता में कहीं न कहीं थोड़ी बुद्धिमानी छिपी हो सकती है। जैसे हर गुण के अपने अच्छे और बुरे पहलू होते हैं। उसी तरह, अज्ञानता के भी छोटे-मोटे ही सही मगर कुछ फायदे जरूर होते हैं। अज्ञानता में बुद्धिमानी ढूँढना ऐसा ही है जैसे आपने आलू को ज़्यादा पकाकर जलाया हो, और अब उसका भुना हुआ स्वाद आपको अच्छा लगने लगा हो। हाँ, वह स्वाद अच्छा लग सकता है, मगर एक सीमा तक ही। यही हाल अज्ञानता का भी है।
हम इंसान हैं - हम खास हैं
इस कमरे में अकेले बैठकर मैं एक कौवे के जोड़े को मेरे सामने वाले पेड़ पर घोंसला बनाते देख रही हूँ। शायद वे बच्चे पैदा करने की योजना बना रहे हैं। दोनों ने मिलकर इस ‘सुंदर नहीं, लेकिन मजबूत और स्थिर’ घोंसले को बनाने के लिए कड़ी मेहनत की है। बारिश आई, तूफान आया और तापमान भी गिर गया, लेकिन ये दोनों रुके नहीं। उन्होंने इस स्थिर घर को बनाने के लिए खूब मेहनत की। अब मादा घोंसले के अंदर बैठी है और नर कौवा पड़ोसी की छत से उसकी निगरानी कर रहा है।
चॉकलेट का स्वाद
मैं चॉकलेट खा रही हूँ और महसूस कर रही हूँ कि ये कितनी बोरिंग और बिल्कुल भी स्वादिष्ट नहीं है। बड़े होने के बाद चॉकलेट का स्वाद वैसा नहीं रह गया। मुझे याद है जब मैं 9वीं कक्षा में थी, मेरी सीट के पास कुछ लड़कियाँ एक बड़ी और पिघल चुकी चॉकलेट आपस में बाँट रही थीं। मैंने उन्हें उस पिघली हुई चॉकलेट को टुकड़ों में तोड़ते देखा। वो कितनी स्वादिष्ट लग रही थी। मैंने उसके स्वाद की कल्पना कई बार अपने मन में की। वो छोटी मैं उस चॉकलेट को पाने के लिए कितनी तरस गई थी। उन दिनों चॉकलेट खाना कितनी बड़ी बात होती थी। मैं और मेरा भाई सिर्फ अपने जन्मदिन पर चॉकलेट खाते थे, साल में कुछ ही बार। मुझे याद है, एक चॉकलेट को पूरे हफ्ते खाना, थोड़ा-थोड़ा करके। उसे तुरंत खत्म नहीं करना, बल्कि उसका भरपूर आनंद लेना।
Category: ThinkBox
People who are Meant to Stay
Right now, preparations for Diwali are going on in India, and I am missing home badly. The cleaning for Diwali was such a headache! When I think of home during Diwali, it’s not just one thing that comes to mind; everything does—the blankets and mattresses pulled out for the winter, the fans covered in dust, and the old, dirty containers in the kitchen.
I remember how my brother and I used to play by making a cinema hall out of the quilts on the roof. When Mom and Dad would recite the Diwali prayers, we would dance like crazy, and Mom would give us angry looks, while singing the prayer.
View & Viewer
This thought first came to my mind when I visited Nainital with my father, probably in August 2021, and since then, whenever I visit a beautiful place, this thought crosses my mind at least once.
Nainital is beautiful, very beautiful. The mountains are draped in a blanket of trees on all sides, and in the middle, there is a serene lake. Sometimes, the clouds descend so low that they almost touch you, and the lake is filled with such beautiful fishes and swans that if you start watching them, you might keep watching for hours.What Did We Learn from the Story of the Tortoise and the Hare?
We’ve all heard the story of the tortoise and the hare countless times since childhood. There’s no need to repeat it here. What I want to discuss is: what did we learn from this story? That slow and steady wins the race, right? But is that really all we learned from this story?
Okay, let’s put it this way: if we were given the choice in life to be either the hare or the tortoise, most of us would choose to be the hare — fast and smart. But yes, we’d try to be a bit smarter than the hare in the story, so we wouldn’t make the mistake of stopping midway. And very few would choose to be the tortoise, who keeps moving steadily and eventually reaches the finish line.
The Pigeons of Europe
Am I so impressed with Europe that I’m writing blogs about every little thing here? No, it’s not quite like that. It’s just my observation about animal behavior and how it differs so much from humans.
A few decades ago, a handful of white pigeons might have arrived here among a major population of black pigeons. Maybe they mutated genetically or migrated from somewhere — either way, it doesn’t really matter. Now, around 80% of the pigeon population here is hybrid. Most of them are white with a little bit of black, and vice versa. I can barely spot any pigeons that are purely black, and even fewer that are purely white. They’re all mixed up, and most of them are hybrids.Indebted for Life
It’s August, which means it’s time for Raksha Bandhan. This year, I’m away from home, but I remember how important this festival is for our families.
Weeks before Rakhi, sisters start sending boxes of sweets to their brothers. In return, the brothers give gifts or money to their sisters. This exchange continues throughout the month of sending rakhi. Whenever I see this exchanging of gifts or items, I sometime feel, how superficial it all is. We give someone a gift, then we are indebted to that person, and then they give us a gift to repay that debt, and this cycle goes on year after year. Perhaps that’s why we can repay all worldly debts but not those to our parents, because what gift can ever equal that?
Intelligence of the Ignorant One
Let’s start with this idea: “One should never be completely ignorant.” Why? Because being ignorant can sometimes cause us to misinterpret a lack of effort or understanding as cleverness or strength.
But, interestingly, there is a certain intelligence in being a little ignorant, just like every characteristic has its pros and cons. Ignorance, too, has its own minor yet positive sides. It’s a bit like accidentally overcooking a potato; that extra roasted, smoky flavor wasn’t the goal, but it brings a unique taste. Ignorance can have a bit of that same unexpected charm—though, like an overcooked potato, only in small doses.
Being Human, Being Unique
While sitting alone in this room, I’m observing a couple of crows making a nest. Maybe they’re planning to have babies.
They’ve worked hard to create this “not-so-beautiful but tough and stable” nest on the tree in front of my window. Despite the rain, thunder, and freezing temperatures, these two didn’t stop. They put in a lot of effort to build this stable home. Right now, the female crow is sitting inside the nest, while the male is watching over her from the neighbor’s roof.The Taste of Chocolate
I’m sitting here having chocolate and realizing that it’s so boring and not at all delicious.
After growing up, chocolate just doesn’t taste the same. I remember when I was in class 9, a few girls next to my seat were sharing a big chocolate among themselves. It was melted, and I watched them break that gooey chocolate into pieces. It looked so delicious! I imagined its taste in my mind countless times. That younger me craved it so badly. Back then, having a chocolate was such a big deal. My brother and I only had chocolates on our birthdays—just a few times a year. I remember savoring one chocolate for almost a week, nibbling at it bit by bit. I didn’t want to finish it quickly; I wanted to enjoy every moment of it.Category: Popular Science
From Exploding Stars to Living Cells: The Tale of Metals
The story begins millions of years ago, when a few elements, heavier than others, started their journey from stardust and eventually ended up in our bloodstreams—making metals vital to life. Have you ever paused to think how the same iron that strengthens bridges also flows through our veins, powering our body? Or why copper, the go-to metal for electrical wires, plays a crucial role in our biological wiring too? The story of how these cosmic travelers ended up in our bodies, driving life’s most essential processes, is nothing short of spectacular. Let’s dive into the journey of these metals—from the fiery chaos of the universe to becoming life’s indispensable elements.